भारत की असल जीडीपी वृद्धि दर 3.7 फ़ीसदी ही है जिसे सरकार 5.7 फीसदी बता रही है जाने कैसे !

कल यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार की अर्थनीति की आलोचना करते हुए यहा तक कह दिया कि अगर यह सरकार अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को आंकने का तरीक़ा नहीं बदलती तो असल वृद्धि दर 3.7 फ़ीसदी ही होती.
यह बात नयी नही है अर्थशास्त्र से जुड़े जितने विद्वान है वह यह हकीकत जानते है,

आइये सरल शब्दों में समझते हैं कि वे ऐसा क्यों बोल रहे है
आर्थिक विषयो से जुड़े पत्रकार अभीक बर्मन ने कहते हैं कि ज्यादा ऊंची विकास दर की बात सिर्फ आंकडोँ का फरेब है और यह नंगे बादशाह ने कपड़े पहन रखे है जैसी बात है

अभीक का कहना है कि सकल घरेलू उत्पादन के हिसाब मेँ भूल-चूक वाले हिस्से मेे 1400000 रख दिये गए है और एक लाख चालीस हजार करोड रुपयोँ की वजह से यह खूबसूरत विकास दर दिख रही है। अगर इसे निकाल लिया जाए तो विकास दर चार फीसदी से ज्यादा नहीँ है।
असल मेँ जीडीपी की गिनती दो तरह से होती है
(1) खर्च की गणना से योगफल से और
(2) उत्पादन के आंकडोँ के योगफल से

कायदे से तो दोनोँ को एक ही संख्या पर पहुंचना चाहिये पर व्यवहार मेँ ऐसा होता नहीँ क्योंकि न आंकडे सही क्वालिटी के मिलते हैँ और न उनके स्रोत एक जैसे होते हैँ।
और भी कई गडबड लगी रहती है। और इन्ही दो आंकडोँ मेँ जो फर्क रह जाता है उसे डिसक्रिपेंसी या भूल-चूक कहते हैँ। यह आंकडा भी अस्थायी ही होता है और जब बेहतर तथा ज्यादा भरोसेमन्द स्रोतोँ से आंकडे आ जाते हैँ तब उसमेँ परिवर्तन कर लिया जाता है

लेकिन भारत मे अस्थायी आंकड़ा ही स्थायी मान लिया गया है
अभीक बनर्जी का कहना है कि डिसक्रिपेंसीज अर्थात भूल-चूक वाला हिसाब हर बार रहता है पर इस बार आश्चर्यजनक रूप से यह पिछली बार से चार गुना बढा दिया गया है यही वो तथ्य है जिसको सब जानते हैं लेकिन अब तक कहने से डर रहे थे
जब हम देश के सकल उत्पादन को देखते हैँ तो लगभग डेढ लाख करोड का मतलब चार फीसदी का ऊपर-नीचे होना है इस बार यही हुआ है , एक लाख चालीस हजार करोड़ रुपये को भूल चूक वाले कॉलम में रख देने का यही मतलब है कि जीडीपी ग्रोथ के मनमाने आंकड़े दिखा कर जनता को विकास की सुनहरी तस्वीरे दिखा कर भरमाया जाए, इसलिए यह कहा जा रहा कि संकट जितना दिख रहा है हकीकत में उस से भी भयानक है
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