बच्चे मरे तो मरे हमें क्या!? वो गाय थोड़ी है जो हमारी भावनाएं आहत होंगी !!!

बच्चे मरे तो मरे हमें क्या! वो गाय थोड़ी है जो हमारी भावनाएं आहत होंगी !!!

बीआरडी अस्पताल में पिछले 3 दिनों में 61 बच्चों की मौत हुयी है और पुरे अगस्त में गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में कुल 290 बच्चो की मौत हो गयी है , इनमें से 213 नवजात आईसीयू में और 77 इंसेफलाइटिस वार्ड में, मौतें हुयी है

बच्चो की रोजाना होती मौत से सभी बहुत दुखी है लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कल के बयान और मौतों का सिलसिला जारी रहने से लगता है कि सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही

सरकार का रवैया असवेंदनशील नज़र आ रहा है ऐसा लग रहा है !जैसे बच्चे मरे तो मरे हमें क्या?
ऐसा ही कुछ इनके भक्तो का है उन्हें भी बच्चो के मरने का कोई दुःख नहीं है ! क्योकि बच्चे उनके प्रिय मुख्यमंत्री के राज्य में मरे है।

सच मानो अगर ये बच्चे किसी और राज्य (गैर बीजेपी शासित) में मर जाते तो आज उन सरकारों का इस्तीफा हो जाता और यही नेता और उनके भक्त उनका जीना मुहाल कर देते।

क्या हो गया हमारे समाज को हम क्यों इतने असवेंदनशील हो गए है क्यों हम किसी सरकार के पुजारी हो गए है क्यों हमे वो दर्द दिखाई नहीं देता। क्या हमने अपने दुःख और सुख सिर्फ किसी सरकार और पार्टी तक सिमित कर लिए है।

क्यों हमे वो बच्चे बच्चे नहीं दिखाई देते जो बीजेपी शासित राज्यों में मर रहे है ऐसा क्यों हो रहा है मुझे समझ नहीं आता। ऐसे समाज की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी जो आज हो रहा है।

हम बच्चो की मौतों को भी किसी पार्टी से देखकर जोड़ते है और पूरी तरह से बच्चों की मौत का बचाव करते है। आज हम हर घटना को पार्टी से लेकर देखते है अगर दुर्घटना किसी और राज्य ((गैर बीजेपी शासित) में है तो पूरा ज़ोर शोर मचाया जाता है और अगर वो ही दुर्घटना बीजेपी शासित राज्य में हो जाये तो लोगो को साँप सूंघ जाता है।

ऐसे कुछ उदहारण है जैसे
अगर किसी और राज्य(गैर बीजेपी शासित) में गाय की मौत हो जाये तो कुछ लोग तांडव मचा देते है ,हिंसा पर उतर जाते है और अगर वो ही मौत बीजेपी शासित राज्य में हो जाये तो बड़ी बेशर्मी से वो ही लोग उनके बचाव में आ जाते है।

ऐसा ही एक मामला दिल्ली में आया जब चिकेनगुनिया से हुई 4 मौतों के कारण देश में हाहाकार मच गया ,वो एक अच्छी बात थी क्योकि हर एक जान की कीमत होती है और उसी के कारण इस वर्ष सरकार ने कड़े कदम उठाये और एक भी मौत नहीं होने दी !
लेकिन वो लोग जिन्होंने तब उन 4 लोगो की मौत पर तांडव मचाया था और राजनैतिक रोटियां सेंकी थी आज गुजरात और राजस्थान में होती सैंकड़ो मौतों पर भी चुप है। या तो उनको उन सरकारों से कोई उम्मीद ही नहीं है या फिर वो इतने असवेंदनशील हो गए है कि उन्हें मौतों से कोई फर्क नहीं पड़ता !

मैं समझ नहीं पा रहा हमारा समाज किस और जा रहा है हमारे अंदर की इंसानियत मरती जा रही है और किसी के प्रति चापलूसी , वफादारी और चमचागिरी बढ़ती जा रही है।

यह सब सोच कर बहुत दुःख होता है हमे राजनीती से ऊपर उठकर इंसानियत की सोचना चाहिए ,दुर्घटना की जिम्मेदार सरकारों को हर कीमत पर कोसना चाहिए और चापलूसी न करके अपने हक़ के लिए हमेशा अपनी आवाज उठाते रहना चाहिए।
हमे किसी पार्टी ,वर्ग,समाज,और विशेष तक सिमित नहीं रहना चाहिए।


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