ख़बरों में हो रही मिलावट -झूठी खबरे और फेक मीडिया का बढ़ता पाखंड

आजकल दुनिया भर में झूठी खबरों पर एक घमासान सा शुरू हो गया है. मौहल्ले और पड़ोस की  झूठी बातें अब गूगल, फेसबुक, व्हाट्सऐप, सोशल टैक्सटिंग के जरीए घंटे भर में पूरी दुनिया में फैल जाती  हैं

आज कल ऐसी झूटी ख़बरों की बाढ़ सी आ गयी है  जो घंटे, 2 घंटे नहीं चलता बल्कि रातदिन चलता रहता है.


जिस तरह धर्मग्रंथों के ठेकेदारों ने लोगों की सदियों से जेबें ढीली कराई हैं उसी तरह आज झूठे समाचार, फेक न्यूज, और झूठे विचारोँ  से लोगों को बुरी तरह बरगलाया जा रहा है. और चुनावों से पहले तो पार्टियां अब चंद नामों से प्रचारकों की फौज को मैदान ए जंग में भेज देती हैं कि विरोधी के खिलाफ जी भर कर झूठ बोलो. चुन्नी चाची की ‘मैं ने तो सुना है भई तो कह दिया, क्या सच है क्या झूठ पता नहीं,’ की तर्ज पर अब कुछ भी कहीं भी कहा जा सकता है.

महिलाएं फेक न्यूज की ज्यादा शिकार हैं. हालांकि राजनीतिबाज ज्यादा रोते नजर आते हैं. महिलाओं को व्हाट्सऐप पर कोई फौर्मूला पढ़ने को दिया नहीं कि वे उसे अपनाने को दौड़ती हैं और दूसरों पर थोपने लगती हैं. खटाक से वह अपने सारे गु्रपों को फौरवर्ड कर दिया जाता है, अपनी मुहर के साथ मानो उन्होंने पुष्टि कर ली.

पढ़ी लिखी महिलाओं से भी इस तरह के फेक न्यूज पर बहस करो तो वे कन्नी काट जाती हैं कि उन्होंने तो बस फौरवर्ड किया था. इन दिनों भ्रामक जानकारी बुरी तरह फैलाई जा रही है. 100-200 मित्रों को ऊटपटांग संदेश भेजे जा रहे हैं, उपदेश दिए जा रहे हैं. धर्मांध इन में ज्यादा होते हैं. अत: कभी व्हाट्सऐप, फेसबुक पर शिवजी को प्रणाम किया जाता है, तो कभी साई बाबा के चमत्कार पर चरण छू लिए जाते हैं.

धर्म के पाखंड का हिस्सा बन गए व्हाट्सऐप और फेसबुक सब से ज्यादा अज्ञान और अतर्क के भंडार बन गए हैं. अमेरिका व यूरोप फेक न्यूज के पीछे पड़े हैं पर वहां भी उन्हें नेताओं की छवि के खराब होने की ज्यादा चिंता है, पीपिंग टौम्स को कंट्रोल करने की कम. व्हाट्सऐप और फेसबुक अब टैक्स्ट के साथ शौर्ट मूवीज भी दिखाने लगे हैं और भ्रामक घटनाओं को काटछांट कर परोसा जा रहा है और भुक्खड़ पंडों की तरह सत्य की लाश पर मृत्यु भोजों में उन्हें खूब खाया जा रहा है.

यह गलत प्रचार का ही नतीजा है कि दुनिया के कितने ही देशों में कट्टरपंथियों की सरकारें बन गई हैं और 100 साल के लोकतंत्र के बाद तानाशाहीतंत्र लौटने लगा है.

महिलाओं को तानाशाही में ज्यादा जुल्म सहने पड़ते हैं और इस की तसवीरें सीरिया, लीबिया, इराक के भागे रिफ्यूजी कैंपों में दिख जाएंगी. यह आप के पड़ोस में नहीं होगा इस की गारंटी नहीं है.

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