तीसरी बकरी-एक मजेदार कहानी जरूर पढ़ें और दोस्तो को भी शेयर करें
*तीसरी बकरी*
पांचवी क्लास में दो विद्यार्थी थे। उनका नाम था शाह और मोदी।
एक दिन जब स्कूल की छुट्टी हो गयी तब मोदी ने शाह से कहा, “दोस्त, मेरे दिमाग में एक आईडिया है!”
“बताओ-बताओ.. क्या आईडिया है?” शाह ने एक्साईटेड होते हुए पूछा।
मोदी: “वो देखो, सामने तीन बकरियां चर रही हैं।”
शाह: “तो! इनसे हमे क्या लेना-देना है?”
मोदी: "हम आज सबसे अंत में स्कूल से निकलेंगे और जाने से पहले इन बकरियों को पकड़ कर स्कूल में छोड़ देंगे, कल जब स्कूल खुलेगा तब सभी इन्हें खोजने में अपना समय बर्वाद करेगे और हमें पढाई नहीं करनी पड़ेगी..”
शाह: “पर इतनी बड़ी बकरियां खोजना कोई कठिन काम थोड़े ही है? कुछ ही समय में ये मिल जायेंगी और फिर सबकुछ नार्मल हो जाएगा..”
मोदी: “हाहाहा.. यही तो बात है, वे बकरियां आसानी से नहीं ढूंढ पायेंगे, बस तुम देखते जाओ मैं क्या करता हूँ!”
इसके बाद दोनों दोस्त छुट्टी के बाद भी पढ़ायी के बहाने अपने क्लास में बैठे रहे और जब सभी लोग चले गए तो ये तीनो बकरियों को पकड़ कर क्लास के अन्दर ले आये।
अन्दर लाकर दोनों दोस्तों ने बकरियों की पीठ पर काले रंग का गोला बना दिया। इसके बाद मोदी बोला, “अब मैं इन बकरियों पे नंबर डाल देता हूँ। और उसने सफेद रंग से नंबर लिखने शुरू किये:
पहली बकरी पे नंबर 1,
दूसरी पे नंबर 2,
और तीसरी पे नंबर 4.
“ये क्या? तुमने तीसरी बकरी पे नंबर 4 क्यों डाल दिया?” शाहने आश्चर्य से पूछा।
मोदी हंसते हुए बोला, “दोस्त यही तो मेरा आईडिया है, अब कल देखना सभी तीसरी नंबर की बकरी ढूँढने में पूरा दिन निकाल देंगे.. और वो कभी मिलेगी ही नहीं..”
अगले दिन दोनों दोस्त समय से कुछ पहले ही स्कूल पहुँच गए।
थोड़ी ही देर में स्कूल के अन्दर बकरियों के होने का शोर मच गया।
कोई चिल्ला रहा था, “चार बकरियां हैं, पहले, दुसरे और चौथे नंबर की बकरियां तो आसानी से मिल गयीं.. बस तीसरे नंबर वाली को ढूँढना बाकी है।”
स्कूल का सारा स्टाफ तीसरे नंबर की बकरी ढूढने में लगा गया.. एक-एक क्लास में टीचर गए अच्छे से तालाशी ली। कुछ खोजूवीर स्कूल की छतों पर भी बकरी ढूंढते देखे गए.. कई सीनियर बच्चों को भी इस काम में लगा दिया गया।
तीसरी बकरी ढूँढने का बहुत प्रयास किया गया, पर बकरी तब तो मिलती जब वो होती..! बकरी तो थी ही नहीं!
आज सभी परेशान थे पर शाह और मोदी इतने खुश पहले कभी नहीं हुए थे। आज उन्होंने अपनी चालाकी से एक बकरी अदृश्य कर दी थी।
इस कहानी को पढ़कर चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आना स्वाभाविक है। पर _इस मुस्कान के साथ-साथ हमें इसमें छिपे सन्देश को भी ज़रूर समझना चाहिए_।
तीसरी बकरी, *दरअसल वो चीजें हैं जिन्हें खोजने के लिए हम बेचैन हैं पर वो हमें कभी मिलती ही नहीं.. क्योंकि वो वास्तव में है ही नहीं*!
*और वो तीसरी बकरी है: "अच्छे दिन"*
इससे भी अच्छे दिन क्या आएंगे?
ReplyDelete1.सपा से छुटकारा
2.बसपा से छुटकारा
3.केजरीवाल से छुटकारा
4.काँग्रेस से छुटकारा ।
लोग कबूतर की तरह आँखें बन्द करके बैठे रहेंगे तो उन्हें कभी अच्छे दिन दिखाई नही देंगे।
ise hi ache din khte hain kya..wo to 2014 mein sab ka sfaya ho hi gya tha
ReplyDeleteBhai ranvir tujhe dikh rhe hain ache din
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