हम काल्पनिक बर्बादी पर ही ख़ुश है ख़ुद वास्तविक बर्बाद हो गए , बस इसमें ही ख़ुश हैं की अब पैसे वाला बर्बाद हो जाएगा

शाम को एक दुकान पर गया था। बाज़ार सूना था। लोगों के पास खर्चने को करेंसी नहीं तो फालतू घूमेंगे भी कितना। खैर, दुकान में सर्दियों का माल भरा पड़ा था और दुकानदार बाहर मायूस सा बैठा था। धीमे से बोला- धंधे की ऐसी-तैसी हो गई है बिलकुल। मेरे साथ खड़े लड़के ने सुर मिलाया- मोदी ने ही की है ऐसी-तैसी।
अचानक दुकानदार का सुर बदला- अरे भाई, उसने क्या किया.. वो तो अब कालेधन वालों की होगी ऐसी-तैसी।
मैं देख रहा था कि ये आदमी अचानक कितना खुश हो गया है। अपनी दुकान बंद होने की नौबत है लेकिन किसी की काल्पनिक बर्बादी पर खुश है। बर्बादी भी किसकी.. जिसके बारे में कभी भी पता नहीं चलेगा कि वो बर्बाद हुआ भी या नहीं। बस हमने कल्पनाओं में उसे बर्बाद कर डाला। जिनका पता चल सकता था उनका नाम स्विस बैंकों से सरकार के पास पहले ही आ चुका है और सबका धंधा अनवरत जारी है। अब तो लोगों का ध्यान भी हट गया.

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