बच्चे मरे तो मरे हमें क्या!? वो गाय थोड़ी है जो हमारी भावनाएं आहत होंगी !!!
बिहार में चमकी बुखार ने तांडव मचा रखा है मरने वाले बच्चों की संख्या 135+ हो गई है.लकिन सरकार खामोश है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में व्यस्त हैं, तो डिप्टी सीएम सुशील मोदी पटना में. जबकि चिराग पासवान गोवा में पार्टी कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात छोटी छोटी बातों पर ट्वीट करने वाले हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी का बच्चो की मौत को लेकर अभी तक कोई ट्वीट तक भी नहीं आया है वो अपनी नई सरकार में व्यस्त है ,दोबारा सरकार बनाने की ख़ुशी में बच्चो की मौत एक रोड़ा है तो उस तरफ कोई सोचना ही नहीं चाहता,प्रधानमंत्री बिलकुल बेफिक्र नज़र आ रहे है और आज रात भव्य डिनर का आयोजन किया गया है जिसमे सांसदों को डिनर कराएंगे ,ऐसा लग ही नहीं रहा कि देश में बच्चे मर रहे है किसी को कोई फ़िक्र नहीं ,क्युकी अभी चुनावों में देरी है तब तक जवान मरे या किसान ,बच्चे मरे या नौजवान इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता !
सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही 117 बच्चों की मौत हो गई. 12 मौतें मोतिहारी और 6 मौतें बेगूसराय में हुई हैं. हर कोई सवाल पूछ रहा है कि बच्चों की सांसें छिनने का सिलसिला कब खत्म होगा? फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
बच्चो की रोजाना होती मौत से सभी बहुत दुखी है लेकिन बिहार की राज्य सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही! सरकार का रवैया असवेंदनशील नज़र आ रहा है ऐसा लग रहा है !जैसे बच्चे मरे तो मरे हमें क्या? ऐसा ही हाल कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों का है उन्हें भी बच्चो के मरने का जरा सा भी दुःख नहीं है! क्योकि बच्चे उनके शासित राज्य में मरे है। ना कि गैर भाजपा शासित राज्य में !
सच मानो अगर ये बच्चे किसी और राज्य (गैर बीजेपी शासित) में मर जाते तो आज उन सरकारों का इस्तीफा हो जाता और यही नेता और उनके समर्थक उनका जीना मुहाल कर देते। ये इतने गिरे हुए स्तर के लोग है कि विपक्ष की हर वो छोटी से छोटी गलतियों पर हंगामा खड़ा करते है लेकिन मोदी के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते या तो इन लोगों ने गुलामी स्वीकार कर ली है या फिर वो मोदी भक्ति में इस कदर पागल हो गए है कि उन्हें मासूम बच्चो की मौते तक दिखाई नहीं देती !
क्या हो गया हमारे समाज को हम क्यों इतने असवेंदनशील हो गए है क्यों हम किसी सरकार के गुलाम हो गए है क्यों हमे वो दर्द दिखाई नहीं देता। क्या हमने अपने दुःख और सुख सिर्फ किसी सरकार और पार्टी तक सिमित कर लिए है। क्यों हमे वो बच्चे दिखाई नहीं देते जो बीजेपी शासित राज्यों सरकार की नाकामियों की वजह में मर रहे है ऐसा क्यों हो रहा है मुझे समझ नहीं आता। ऐसे समाज की किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी जैसा आज देश में हो रहा है।
हम बच्चो की मौतों को भी किसी पार्टी से देखकर जोड़ते है और पूरी तरह से बच्चों की मौत का बचाव करते है। आज हम हर घटना को पार्टी से लेकर देखते है अगर दुर्घटना किसी और राज्य ((गैर बीजेपी शासित) में है तो पूरा हंगामा मचाया जाता है,तांडव मचा देते है ,हिंसा पर उतर जाते है और अगर वो ही दुर्घटना बीजेपी शासित राज्य में हो जाये तो लोगो को साँप सूंघ जाता है और बड़ी बेशर्मी से वो ही लोग उनके बचाव में आ जाते है।
आज इंसानो की कीमत जानवरों से भी कम है। मैं समझ नहीं पा रहा हमारा समाज किस ओर जा रहा है हमारे अंदर की इंसानियत मरती जा रही है और नेताओँ के प्रति चापलूसी , वफादारी और चमचागिरी बढ़ती जा रही है।
यह सब सोच कर बहुत दुःख होता है हमे राजनीती से ऊपर उठकर इंसानियत के बारे में सोचना चाहिए ,दुर्घटना की जिम्मेदार सरकारों को हर कीमत पर कोसना चाहिए और चापलूसी न करके अपने हक़ के लिए हमेशा अपनी आवाज उठाते रहना चाहिए।
हमे किसी पार्टी ,वर्ग,समाज,और विशेष तक सिमित नहीं रहना चाहिए।
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