संजय सिंह ने बताया बीजेपी और संघ का इतिहास-बोले जिन्ना को श्रद्धांजलि और भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करने वाले न पढाये देशभक्ति का पाठ

आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह  ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में लगी तस्वीर को लेकर उपजे विवाद और हिंसा की निंदा करते हुए इसके लिए केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि AMU में जिन्ना की फ़ोटो के नाम पर बीजेपी पूरे देश में नकली राजनीति कर रही है। देश का ध्यान असली मुद्दों से हटाकर नकली मुद्दों पर लाने के लिए जिन्ना तो सिर्फ एक बहाना है।



आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार जिन्ना भारत में स्वीकार्य नहीं है। लेकिन जिन्ना के नाम पर हिंसा को भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। संजय सिंह ने एएमयू में हिंसा के पीछे भाजपा कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि देश के टुकड़े करने वाले जिन्ना के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है। हालांकि उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि जिन्ना की क़ब्र पर जाकर श्रद्धांजलि देने वाले लालकृष्ण आडवाणी देश के पहले नेता थे।

संजय सिंह ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि "मैं कल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्रों के समर्थन में गया था, वहाँ पर भाजपाइयों की हैवानियत का ठीक से पता चला। भाजपा के गुंडों ने संगठित तरीके से छात्रों पर लाठियां चलाई ।बहुत से छात्रों को गंभीर चोटें आई हैं। मोदी जी दुनिया भर में तो बोलते हैं ,लेकिन अपने देश के छात्रों के साथ हो रहे इस दुर्व्यवहार पर कुछ नही बोलते हैं। मोदी जी को 2014 में जिन नौजवानों ने गद्दी पर पहुँचाया है वही नौजवान 2019 में उनको सबक सिखाएंगे।

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उन्होंने आगे कहा कि जिन्ना की क़ब्र पर फूल चढ़ाने वाले आडवाणी जी और भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मानने वाले लोग देश भक्ति का पाठ न पढ़ाये । देश तोड़ने वाले जिन्ना के लिये भारत में कोई स्थान नही है अगर हिंदुस्तान का मुसलमान जिन्ना को मानता और मुस्लिम लीग को मानता तो हिंदुस्तान में नहीं रहता पाकिस्तान में रहता और अगर वो हिंदुस्तान में है तो हमारा भाई है और हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने भाई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती के साथ खड़े रहें।

आम आदमी पार्टी के तेज-तर्रार सांसद संजय सिंह ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े जिन्ना विवाद के बीच भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी आड़े हाथों लिया। संजय सिंह ने एक खबर का हवाला देते हुए भाजपा के पुरखे और मोहम्मद अली जिन्ना के संबंधों पर सवाल उठाया है। अपने ट्विटर हैंडल पर आप सांसद ने जिन्ना के साथ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर पर बड़ा सवाल किया है।

अपने ट्वीट में संजय सिंह लिखते हैं- 'दैनिक जागरण ने ये तस्वीर छापी है, जिसमें जिन्ना और श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक साथ हैं, अब भाजपाई बतायें उनके पुरखे जिन्ना के साथ क्या कर रहे थे?'हैरानी की बात यह है कि यही तस्वीर संसद में लगी हुई है, जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अन्य बड़ी हस्तियां जिन्ना के साथ नजर आ रहे हैं। लेकिन भाजपा को एएमयू में लगी जिन्ना की तस्वीर पर ऐतराज है।
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आपको बता दें कि भाजपा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 1936 से लगी आ रही जिन्ना की तस्वीर पर सवाल उठा रही है। इसके साथ ही हिंदू युवा वाहिनी ने भी इस तस्वीर को हटाने की मांग तेज कर दी है। इस वजह से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तनाव का माहौल बना हुआ है। संजय सिंह ने जाने-माने इतिहासकार आर सी मज़ूमदार की किताब का हवाला देते हुए कहा है कि आज़ाद भारत के इतिहास में बीजेपी के चोटी के नेता रहे लाल कृष्ण आडवाणी के सिवाय कभी भी, किसी भी अन्य पार्टी के नेता या मंत्री ने मोहम्मद अली जिन्ना की न तो कभी तारीफ़ की और ना ही किसी ने कभी जिन्ना की मज़ार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने एक वीडियो जारी करते हुए भाजपा और संघ पर करारा हमला किया है जानिए वीडियो में कहे संजय सिंह का एक एक शब्द :-
संजय सिंह ने कहा कि ये किसी से छिपा नहीं है कि आज़ादी की लड़ाई में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई योगदान नहीं था। उल्टा संघियों को जब भी मौका मिला, उन्होंने अँग्रेज़ों का ही साथ दिया। यहाँ तक कि बीजेपी के पूर्व अवतार जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिन्हें बीजेपी वाले और मोदी अपना प्रेरणा पुरुष बताते थकते नहीं हैं, वही श्यामा प्रसाद आज़ादी से पहले की बंगाल की उस सरकार में उपमुख्यमंत्री थे, जिसकी अगुवाई मुस्लिम लीग़ के उसी नेता फ़ज़लुल हक़ कर रहे थे, जिसमें देश के विभाजन में बड़ी भूमिका निभायी थी। बँटवारे के बाद यही फ़ज़लुल हक़, पाकिस्तान की पहली लियाक़त अली सरकार में गृहमंत्री बने थे।

इतिहारकार आर सी मज़ूमदार की किताब का हवाला देते हुए संजय सिंह ने कहा कि 1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन यानी क्विट इंडिया मूवमेंट अब चरम पर था, जब श्यामा प्रसाद मुखर्ज़ी ने अँग्रेज़ गर्वनर को मशविरा दिया था कि कैसे और क्यों इस आन्दोलन का सख़्ती से दमन करना ज़रूरी है।

इस ऐतिहासिक तथ्य से साफ़ है कि सत्ता लोपुप श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने निजी और संघ के राजनीतिक स्वार्थ की सिद्धि के लिए उन अँग्रेज़ों का साथ लिया था, जिनसे संघर्ष करते हुए महात्मा गाँधी की अगुवाई में काँग्रेसी लोग आज़ादी हासिल करने के लिए तमाम जद्दोज़हद कर रहे थे।श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर संघी नारा लगाते हैं कि ‘जहाँ हुआ बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है’, लेकिन सच्चाई ये है कि मुखर्जी उस वक़्त मुस्लिम लीग़ में बड़े नेता की हैसियत रखते थे, जब उसकी बंगाल में सत्ता थी। कालान्तर में जब मुस्लिम लीग़ की राजनीति की वजह से देश के बँटवारे के हालात बन गये तो मुखर्जी ने अपना सियासी चोला बदल लिया और वो काँग्रेस में शामिल हो गये। आज़ादी के बाद उनके सियासी क़द और अनुभव को देखते हुए जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया।

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लेकिन महात्मा गाँधी की हत्या के बाद जब इस बात की भनक लगी कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी और संघ के शीर्ष नेताओं ख़ासकर वीर सावरकर के बीच बहुत नज़दीकी है तो हालात ऐसे बन गये कि मुखर्जी ने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया और जल्द ही हिन्दू महासभा से रूपान्तरित होकर बनी भारतीय जनसंघ के संस्थापक बन गये। जनसंघ की स्थापना के पीछे उस सावरकर की अहम भूमिका थी, जिसने 1911 और 1913 में अँग्रेज़ों से माफ़ी माँगकर अपनी कालापानी की सज़ा में रियायत की फ़रियाद की और बदले में अँग्रेज़ों की हर-सम्भव मदद करने का वादा किया। ऐसे ही प्रयासों की वजह से सावरकर को 1921 में राहत देकर उनके गृहनगर पुणे की यरवदा जेल में भेज दिया था। आगे चलकर यही रहते हुए अँग्रेज़ों की इच्छा के मुताबिक, सावरकर ने उस संघ की स्थापना की जो उस सिक्के का दूसरा पहलू था जिसके एक ओर कट्टरपन्थी मुसलमान थे तो दूसरी ओर कट्टरपन्थी हिन्दू। इन दोनों को ही अँग्रेज़ों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का काम सौंपा था। ताकि काँग्रेस और उसकी अगुवाई में चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन में दिखने वाली आवाम की एकता को कमज़ोर किया जा सके।
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