अरुण जेटली के यू -टर्न -क्या यह वित्तमंत्री जी की विफलताओं को दर्शाता है ?

अरुण जेटली भारत के 37 वे वित्तमंत्री है अरुण जेटली को ये अहम् पद अमृतसर सीट से हारने के बावजूद 2014 में आयी बीजेपी सरकार में मिला। तब से भारत के वित्तमंत्री अरुण जेटली जी  ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कुछ अहम् निर्णय लिए.
जैसे नोटबंदी , जीएसटी और अब एफआरडीआई 
लेकिन हर बार अरुण जेटली जी को यू टर्न लेना पड़ा , सभी निर्णयों में ऐसा लगा जैसे सरकार बिना किसी तैयारी और समझ के जल्दबाजी में कानून लाने जा रही हो। और जल्दबाजी में लिए निर्णयों को जनता पर थोप रही हो।

नोटबंदी -
आपको ज्ञात होगा की नोटबंदी के दौरान किस प्रकार सरकार और उसके कानून पल पल बदले थे ,डेली एक नई एडवाइजरी जारी होती थी और रोजाना नियम कानून बदले जाते थे जिसे देखकर लगा कि सरकार और वित् मंत्रालय का यह निर्णय बिना सोचे समझे लिया गया था ! जिसमे पहले से लोगो की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया बल्कि जब जनता में त्राहि त्राहि मची तो जल्दबाजी में नियम कानून बदले गए।

8 नवंबर को प्रधान मंत्री मोदी ने घोषणा की कि बैंकों में 4,000 रुपये के पुराने नोट्स का आदान-प्रदान किया जा सकता है।और एटीएम से निकासी की सीमा 2,000 रुपये पर निर्धारित की गई थी।जिसमे 10,000 रुपये की दैनिक के साथ एक सप्ताह में निकासी की सीमा 20,000 रुपये निर्धारित की गई थी।
 लेकिन उसके बाद रोजाना यह सीमा घटाई और बढ़ाई गयी जिससे लोगो को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा और जो नोटबंदी अरुण जेटली जी के लिए एक चुनौती थी जिसमे पूरी सरकार असफल दिखाई पड़ी !

जीएसटी-
गुड्स एंड सर्विस टैक्स जिसके अंतर्गत एक राष्ट्र और एक टैक्स की बात कहि गयी थी। ज्यादा टैक्स रेट और जीएसटी को बिना समझे और समझाए सरकार ने लागु कर दिया जिसके कारण पुरे भारत में जीएसटी का जमकर विरोध हुआ।
लाखों की संख्या में लोग बेरोजगारी की तरफ बढ़ गए और लोगो के व्यापार ठप हो गए जिससे व्यापारी वर्ग खासा नाराज़ हुआ।
जीएसटी में भी अरुण जेटली जी को 2 बार यू टर्न लेने पड़े और बाद में गुजरात चुनावों के मद्देनज़र जीएसटी के टैक्स दरों में गिरावट की गयी।
जिससे लगता है कि जीएसटी को लागु करने से पहले न तो जीएसटी के टैक्स रेट को जाँचा गया ना ही जीएसटी के प्रावधानों को
जिसके कारण  बाद में जीएसटी में कई फेरबदल करने पड़े


एफआरडीआई -
अरुण जेटली ने हाल ही में संसद के शीत कालीन सत्र में पेश होने वाले Financial Resolution and Deposit Insurance bill यानि एफआरडीआई बिल में भी शंसोधन के संकेत है
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद से पहले लंबित वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) बिल में प्रावधानों पर बढ़ते हुए असंतोष को लेकर एक बार फिर पीछे हटने का फैंसला लिया है इसमें सरकार अपने कुछ विवादास्पद प्रावधानों से पीछे हो सकती है।
अभी तक इस बिल के अनुसार - बैंकों के एनपीए की समस्या तीव्र होने पर नया रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन यह तय करेगा कि बैंक में ग्राहकों के डिपॉजिट किए गए पैसे में ग्राहक कितना पैसा निकाल सकता है और कितना पैसा बैंक को उसका एनपीए पाटने के लिए दिया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर मौजूदा समय में बैंक में सेविंग खाते में पड़े आपके एक लाख रुपये को आप जब चाहें और जितना चाहें निकाल सकते हैं. लेकिन नया कानून आ जाने के बाद केन्द्र सरकार नए कॉरपोरेशन के जरिए तय करेगी कि आर्थिक संकट के समय में ग्राहकों को कितना पैसा निकालने की छूट दी जाए और उनकी बचत की कितनी रकम के जरिए बैंकों के गंदे कर्ज को पाटने का काम किया जाए.

तीनो मुद्दों पर वित्तमंत्री जी विफल नज़र आ रहे हैं और जनता पिसती हुई नज़र आ रही है !


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