26 जनवरी का संदेश
लोकतंत्र का अर्थ केवल अधिकार नहीं होता है. लोकतंत्र का अर्थ होता है अधिकार और कर्तव्यों का समन्वय.
भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे दुखद बात यह है, कि अभी तक इसकी ढेर सारी कमियों को दूर नहीं किया गया है.
आइए मनाएँ गणतन्त्र का पर्व जन जागरूकता के साथ.
आइए मनाएँ गणतन्त्र का पर्व जन जागरूकता के साथ.
जागरूक जनता हीं लोकतंत्र में अपने कर्तव्यों को खुद निभाती है, और जनता के द्वारा निभाए गए कर्तव्य हीं जनता के अधिकारों की रक्षा करते हैं.
किसी देश के संविधान में समय के साथ जब सुधार नहीं किए जाते हैं, तब उस देश में लोकतान्त्रिक मूल्यों का हनन होने लगता है.
देश से बढ़कर न धर्म है, न जाति, न भाषा, न राज्य, भारत भूमि में हीं हमने जन्म पाया है. और इसी धरती पर हमारा पालन-पोषण हुआ है.
जिस देश की जनता जागरूक नहीं है, वहाँ लोकतंत्र मूकदर्शक बनकर रह जाता है. और जनता दुख सहती रहती है.
लोकतंत्र में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सत्ता में बैठने वाले के पास विध्वंसक शक्तियाँ न हो.
जिस लोकतंत्र में स्त्री और पुरुष के हितों का बराबर ध्यान न रखा गया हो, वह केवल नाम का लोकतंत्र है.
जनसहभागिता के बिना लोकतंत्र निष्प्रभावी है.
मीडिया और राजनीत सही हाथों में होने चाहिए क्योंकि ये दोनों लोकतंत्र को आबाद या बर्बाद कर सकते हैं.
यदि लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रपिता घोषित किया जाता है, तो यह राष्ट्र का अपमान होता है. क्योंकि महानतम व्यक्ति भी राष्ट्र की सन्तान हीं होता है, वह उस राष्ट्र का पिता नहीं हो सकता है.
सत्ता अगर बुरे लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाए, तो लोकत्रंत्र एक मजाक बनकर रह जाता है.
कमजोर लोकतंत्र, जनता के दुखों का कारण होता है.
संविधान निर्माण के समय अक्सर गलतियाँ हो जाती है, जिन्हें ठीक करना भावी पीढ़ी का दायित्व हो जाता है.
भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को जातिवाद, व्यक्तिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और पार्टीवाद ने अपूर्णीय क्षति पहुंचाई है.
लोकतंत्र तब दर्द से कराह उठता है, जब अच्छे लोग निष्क्रिय बनकर तमाशा देखने वाले दर्शक बन जाते हैं.
जनता जब भावनाओं में बहकर मतदान करती है, तो अपने साथ खुद अन्याय करती है.
किसी देश के संविधान में समय के साथ जब सुधार नहीं किए जाते हैं, तब उस देश में लोकतान्त्रिक मूल्यों का हनन होने लगता है.
देश से बढ़कर न धर्म है, न जाति, न भाषा, न राज्य, भारत भूमि में हीं हमने जन्म पाया है. और इसी धरती पर हमारा पालन-पोषण हुआ है.
जिस देश की जनता जागरूक नहीं है, वहाँ लोकतंत्र मूकदर्शक बनकर रह जाता है. और जनता दुख सहती रहती है.
लोकतंत्र में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सत्ता में बैठने वाले के पास विध्वंसक शक्तियाँ न हो.
जिस लोकतंत्र में स्त्री और पुरुष के हितों का बराबर ध्यान न रखा गया हो, वह केवल नाम का लोकतंत्र है.
जनसहभागिता के बिना लोकतंत्र निष्प्रभावी है.
मीडिया और राजनीत सही हाथों में होने चाहिए क्योंकि ये दोनों लोकतंत्र को आबाद या बर्बाद कर सकते हैं.
यदि लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रपिता घोषित किया जाता है, तो यह राष्ट्र का अपमान होता है. क्योंकि महानतम व्यक्ति भी राष्ट्र की सन्तान हीं होता है, वह उस राष्ट्र का पिता नहीं हो सकता है.
सत्ता अगर बुरे लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाए, तो लोकत्रंत्र एक मजाक बनकर रह जाता है.
कमजोर लोकतंत्र, जनता के दुखों का कारण होता है.
संविधान निर्माण के समय अक्सर गलतियाँ हो जाती है, जिन्हें ठीक करना भावी पीढ़ी का दायित्व हो जाता है.
भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को जातिवाद, व्यक्तिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और पार्टीवाद ने अपूर्णीय क्षति पहुंचाई है.
लोकतंत्र तब दर्द से कराह उठता है, जब अच्छे लोग निष्क्रिय बनकर तमाशा देखने वाले दर्शक बन जाते हैं.
जनता जब भावनाओं में बहकर मतदान करती है, तो अपने साथ खुद अन्याय करती है.
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ReplyDeletetst
DeleteThanks for sharing such a wonderful and helpful post with me.
ReplyDeleteresultsxp
naagin 3 release date on colors tv is soon be announced so wait and watch
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