रानी पद्मावती का सच्चा इतिहास ।कायर अलाउद्दीन खिलजी पर भारी पड़ा था रानी पद्मावति का ‘अदम्य साहस : ये है सच्चा इतिहास !!

हिंदुस्तान के इतिहास में दफन वो तारीख जब दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश के दूसरे शासक ने चित्तौडगढ़ पर कब्जा किया था। वो साल 1303 का था और ये साल 2017 और आज 714 साल बाद भी खिलजी की ‘विजय’ और चित्तौडगढ़ की रानी पद्मावति कहानी सुनते ही दिल सिहर उठता है । 

महान थे राजपूत और उनका गौरव और बेहद झूठा और मक्कार था ख़िलजी । बता दें कि अलाउद्दीन खिलजी का मूल नाम अली गुर्शप्प था और वो बचपन से ही बेहद मक्कार था, उसने अपने चाचा और अपनी पत्नी के पिता यानी रिश्ते में में ससुर जलाल-उद-दीन फिरोज खिलजी की हत्या कर दी और उसके बाद 1296 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठ गया था । ग़ौरतलब है कि चित्तौड़गढ़ पर खिलजी की कूच की वजह चितोड़गढ़ को जीतना और रानी पद्मावति को अपनी सेक्स ग़ुलाम बनाना था । अवधी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखे पद्मावत में इसका वर्णन है।

राजपूतों को हराने और रानी को सेक्स ग़ुलाम बनाने की चाह मन में लिए खिलजी ने 1303 में चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई कर दी। वह भारी लाव लश्कर लिए चित्तौडगढ़ किले के बाहर डट गया था ।
चित्तौड़ के महाराणा रतन सिंह को जब दिल्ली से खिलजी की सेना के कूच होने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपने भाई-बेटों को दुर्ग की रक्षा के लिए इकट्ठा किया। समस्त मेवाड़ और आस-पास के क्षत्रों में रतन सिंह ने खिलजी का मुकाबला करने की तैयारी की। किले की सुद्रढ़ता और राजपूत सैनिको की वीरता और तत्परता से 6 माह तक अलाउद्दीन ख़िलजी नाम का ये कायर मुग़ल अपने उदेश्य में सफल नहीं हो सका और उसके हजारों सैनिक मारे गए थे । तब जैसा कि इन मुग़लों का ख़ानदानी काम ही था कि ये अपने बाप-भाइयों की हत्या करते थे वैसी ही चाल इस दुष्ट ख़िलजी ने खेली औरउसने योजना बनाकर महाराणा रतन सिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा और कहलवाया कि मैं मित्रता का इच्छुक हूं।

महारानी पद्मावति की मैंने बड़ी तारीफ सुनी है, सिर्फ उनके केवल दर्शन करना चाहता हूं । कुछ गिने चुने सिपाहियों के साथ एक मित्र के नाते चित्तौड़ के दुर्ग में आना चाहता हूं। इससे मेरी बात भी रह जायेगी और आपकी भी। महाराणा उसकी चाल के झांसे में आ गए। 200 सैनिकों के साथ खिलजी दुर्ग में आ गया। महाराणा ने अतिथि के नाते खिलजी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय खिलजी को किले के प्रथम द्वार तक पहुंचाने आ गए ।
नीच और धूर्त खिलजी मीठी-मीठी प्रेम भरी बातें करता-करता बड़ी ही चालाकी से महारणा को अपने पड़ाव तक ले आया और मौका देख बंदी बना लिया। राजपूत सैनिकों ने महाराणा रतन सिंह को छुड़ाने के लिए बड़े प्रयत्न किए लेकिन वह असफल रहे और अलाउद्दीन ने बार-बार यही कहलवाया कि रानी पद्मावति हमारे पड़ाव में आएंगी तभी हम महाराणा रतन सिंह को मुक्त करेंगे अन्यथा नहीं । रानी बेहद बहादुर थीं । रानी ने भी खिलजी की ही तरह युक्ति सोची और कहलाया कि वह इसी शर्त पर आपके पड़ाव में आ सकती है जब पहले उसे महाराणा से मिलने दिया जाए और उसके साथ उसकी दासियों का पूरा काफिला भी आने दिया जाए। इस प्रस्ताव को खिलजी ने स्वीकार कर लिया। योजनानुसार रानी पद्मावति की पालकी में उसकी जगह स्वयं उनका खास काका गोरा बैठा और दासियों की जगह पालकियों में सशत्र राजपूत सैनिक बैठे ।

पालकियों को उठाने वाले कहारों की जगह भी वस्त्रों में शस्त्र छुपाए राजपूत योद्धा ही थे। बादशाह के आदेशानुसार पालकियों को राणा रतन सिंह के शिविर तक बेरोकटोक जाने दिया गया और पालकियां सीधी रतन सिंह के तंबू के पास पहुंच गई। वहां इसी हलचल के बीच राणा रतन सिंह को अश्वारूढ़ कर किले की और रवाना कर दिया गया और बनावटी कहार और पालकियों में बैठे योद्धा पालकियां फेंक खिलजी की सेना पर भूखे शेरों की तरह टूट पड़े।

अचानक अप्रत्याशित हमले से खिलजी की सेना में भगदड़ मच गई थी और गोरा अपने प्रमुख साथियों सहित किले में वापस आने में सफल रहा। महाराणा रतन सिंह भी किले में पहुच गए। लेकिन छह माह के लगातार घेरे के चलते दुर्ग में खाद्य सामग्री की भी कमी हो गई थी। इससे घिरे हुए राजपूत तंग आ चुके थे। अतः जौहर और शाका करने का निर्णय लिया गया । गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया। पद्मावति के नेतृत्व में 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने संबंधियों को अंतिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया था । ये सोचकर ही रूह काँप जाती है कि हमारे देश की वीरांगनाएँ इज़्ज़त की ख़ातिर जीते जी जल गयी ।

छह माह और सात दिन के खूनी संघर्ष के बाद विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरुष, स्त्री या बालक जीवित नहीं मिला जो यह बता सके कि आखिर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सकें। उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशें और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे।

लेकिन आज के ये बॉलीवुड वाले उनकी बलिदानी , त्याग और मान का मज़ाक़ उड़ाने के लिए ऐसी फ़िल्म बना रहे हैं जिसमें महारानी को ख़िलजी की प्रेमिका दिखाया जाएगा , जिसमें महारानी को ख़िलजी के साथ चुम्बन दृश्य करते फ़िल्माया जाएगा । क्या रानी पद्मावति ख़िलजी की प्रेमिका हो सकती हैं ? क्या रानी पद्मावति जैसी वीरांगना का और वीर राजपूतों का ये बेहद बड़ा अपमान नहीं है कि आज़ाद भारत में ऐसी फ़िल्म बनायी जाए । अगर ये ऊपर लिखी सच्ची इतिहास की सच्ची कहानी पढ़कर आपके रोम रोम में ज्वाला जागती है और देश के गौरव का अनुभव होता है इस लेख को जन जन तक पहुँचाने में हमारी मदद करें ।

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